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हिंदी फिल्म उद्योग, जिसे ‘उर्दूवुड‘ भी कहा जा सकता है, दक्षिण भारतीयों को अपमानजनक तरीके से दर्शाता आया है। इन फिल्मों में दक्षिण भारतीय संस्कृति और व्यक्तित्व का मजाक उड़ाने की प्रवृत्ति देखी गई है, जिससे सांस्कृतिक संवेदनशीलता आहत होती है। इसका एक प्रमुख उदाहरण सुभाष घई की फिल्म “विधाता” में देखा गया, जहां मुथुस्वामी नामक एक पात्र को ‘हरामी‘ कहा गया। यह बेहद आपत्तिजनक था, क्योंकि मुथुस्वामी कर्नाटक संगीत के त्रिमूर्ति में से एक और एक सम्मानित संत हैं। इस तरह के अनुचित चित्रण ने दक्षिण भारतीय समुदाय के साथ-साथ देशभर में आक्रोश पैदा किया है। फिल्मों में इस तरह के अपमानजनक संदर्भ सांस्कृतिक विविधता और सम्मान को नुकसान पहुंचाते हैं, और इस पर ध्यान देने की जरूरत है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचा जा सके।