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तस्लीमा नसरीन को सत्य घटनाओं पर आधारित ‘लज्जा’ उपन्यास के कारण अपने देश से निर्वासित होना पड़ा। इसी उपन्यास के एक अंश में वे अनिल चंद्र के बारे में लिखती हैं, जो अपनी पत्नी तथा 2 बेटियों, 14 वर्षीय पूर्णिमा और 6 वर्षीय छोटी बेटी के साथ बांग्लादेश के सिराजगंज में रहते थे। 8 अक्टूबर को बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिद ज़िया की पार्टी से संबंधित अब्दुल अली, अल्ताफ हुसैन, हुसैन अली, अब्दुर रउफ, यासीन अली, लिटन शेख और 5 अन्य लोगों ने उनके घर पर हमला कर दिया। अनिल चंद्र को डंडों से मारकर बाँध दिया गया और काफ़िर कहकर गालियां दी गईं। फिर उन लोगों ने माँ के सामने 14 साल की बेटी का बलात्कार किया, और वो लाचार माँ केवल इतना ही कह पाई, “अब्दुल अली, एक-एक करके करो, नहीं तो वो मर जाएंगी।” इसके बाद उनकी छोटी 6 वर्षीय बेटी का भी बलात्कार किया। परिवार को मरने के लिए छोड़ दिया। इस घटना पर भारत में किसी बुद्धिजीवी या मीडिया ने प्रतिक्रिया नहीं दी। शांतिदूत देशों में हिंदू अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न आम है, जबकि भारत में कुछ लोगों को डर लगता है।