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आज के बच्चों को उनकी मातृभाषा नहीं आती है। वह पश्चिमीकरण से इतना प्रभावित हो गए है कि उन्हें अपना कुछ भी अच्छा नहीं लगता है। इस कारण से ये युवा भारत के असल इतिहास और संस्कृति को समझ ही नहीं पाते है। उन्हें लगता है की वह इन्हें जानकर क्या ही कर लेंगे।
लेकिन अगर हम भूल गए की हमारे पूर्वज कैसे थे? उनका संघर्ष कैसा था? यहां के इतिहास में क्या क्या हुआ तो हम ये भी नहीं समझ पाएंगे की हम क्या है? क्योंकि इतिहास और संस्कृति ही किसी क्षेत्र के लोगों को परिभाषित करते है। वहीं अगर हम पश्चिमीकरण का शिकार हो जाते है तो वो जैसे भी चाहे हमे अपने इशारों पर चला सकते है। जिसके कारण हम उनके बस में होंगे। फिर धीरे धीरे करके हमारी अपनी पहचान ही नहीं रहेगी।
उदाहरण के लिए अगर हम विदेश में है और वहां हमारा पासपोर्ट खो जाएं। तो जिस देश के हम है वो पासपोर्ट न होने के कारण हमे नहीं पहचानेगा। वहीं जिस देश में हम है उस देश के न होने के कारण हमारी कोई पहचान ही नहीं होगी। बस असल जीवन में ये पासपोर्ट हमारी संस्कृति और इतिहास है। इसे बचाना ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए, नहीं तो हम भी बिना किसी पहचान के घूमते रह जाएंगे, कोई हमे नहीं पूछेगा। इसलिए अपने बच्चों को अपनी मातृभाषा सिखाएं व उन्हें असल इतिहास का ज्ञान दे। ये हमारा कर्तव्य है।